कब और किसने बनाई थी बाबरी मस्जिद, कैसे पड़ा इसका नाम

माना जाता है कि मुगल शासक बाबर के सेनापति मीर बाकी ने अयोध्या में मस्जिद का निर्माण किया था जिसे बाबरी मस्जिद के नाम से जाना जाता था।  पूरी दुनिया में मंदिर और मस्जिद के विवाद को लेकर हिंदू मुस्लिम के बीच गहरी खाई खोदने वाले अयोध्या के राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद के बारे में तो हर किसी को पता है और यह भी पता है कि इस मामले को लेकर कितने झूठे महाराजबा हुआ है।लेकिन शायद अगर इतिहास की बात करें तो कम ही लोगों को पता होगा कि आखिरकार जिस स्थान पर भगवान श्री राम के जन्म की बात कही जा रही है उस स्थान पर एक मस्जिद का निर्माण हुआ कैसे?  इस खबर के जरिए हम आपको यह बताने की कोशिश करेंगे कि आखिरकार इस मस्जिद को लेकर इतना बड़ा बवाल क्यों हुआ आखिर हिंदू और मुसलमानों के बीच इतना बड़ा खून खराबा हुआ क्यों?आपको बता दें, इस मस्जिद का निर्माण मीर बाकी ने अपने बादशाह बाबर के नाम पर किया था।

बाबर 1526 में भारत आया था।  1528 तक उसका साम्राज्य अवध (वर्तमान अयोध्या) तक पहुंच गया।  आपको बता दें, इसके बाद लगभग तीन सदियों तक के इतिहास की जानकरी किसी भी ओपन स्रोत पर मौजूद नहीं है।

जिसके बाद 6 दिसंबर 1992 की तारीख इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई।  बता दें, हजारों की संख्या में कारसेवकों ने अयोध्या पहुंचकर बाबरी मस्जिद ढहा दिया था और एक अस्थाई राम मंदिर बना दिया था।  इसके बाद ही पूरे देश में चारों ओर सांप्रदायिक सामुदायिक दंगे होने लगे।  लगभग 2000 लोगों ने अपनी जान गंवाई।
कब और किसने बनाई थी बाबरी मस्जिद, कैसे पड़ा इसका नाम

1853: ... जब पहली बार अयोध्या में दंगे हुए थे कहा जाता है कि अयोध्या मंदिर- मस्जिद मुद्दे को लेकर हिंदू-मुस्लिम के बीच पहली बार 1853 में दंगा हुआ था।  उस समय निर्मोही अखाड़ा ने ढांचे पर दावा करते हुए कहा कि जिस स्थान पर मस्जिद बनाई गई है।  वहाँ एक मंदिर हुआ करता था।  जिसे बाबर के शासनकाल में नष्ट कर दिया गया।  अगले 2 वर्षों तक इस मुद्दे को लेकर अवध (वर्तमान में आयोध्या) में हिंसा भड़कती रही।

फैजाबाद जिला यार्डट 1905 के अनुसार 1855 तक, हिंदू और मुस्लिम दोनों एक ही इमारत में पूजा या इबादत करते रहे थे।

आपको बता दें, तब से लेकर आज तक हिंदू मुस्लिम समुदाय के बीच इस बात पर बहस छिड़ी है कि अयोध्या में पहले मंदिर था या मस्जिद।  6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद को ढहा दिया गया।  जिसके बाद जमीन के मालिकाना हक से जुड़े एक मामले इलाहाबाद हाईकोर्ट में दर्ज किया गया था।
इस मामले में हाई कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने 30 सितंबर 2010 को 2.77 एकड़ की जमीन पर अपना फैसला सुनाया था।  इस फैसले के अनुसार जमीन का एक तिहाई हिस्सा राम मंदिर को होगा।  जिसका अर्थ्त्व प्रतिनिध हिंदु महासभा ’होगा।  दूसरा एक तीसरा हिस्सा 'सुन्नी वक्फ बोर्ड' को और बाकी का एक हिस्सा निम्मोही अखाड़े को दिए जाने का फैसला किया गया।  आपको बता दें, 9 मई 2011 में हिंदू और मुस्लिम पक्षों ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दी थी।

इस मामले में हाई कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने 30 सितंबर 2010 को 2.77 एकड़ की जमीन पर अपना फैसला सुनाया था।  इस फैसले के अनुसार जमीन का एक तिहाई हिस्सा राम मंदिर को होगा।  जिसका अर्थ्त्व प्रतिनिध हिंदु महासभा ’होगा।  दूसरा एक तीसरा हिस्सा 'सुन्नी वक्फ बोर्ड' को और बाकी का एक हिस्सा निम्मोही अखाड़े को दिए जाने का फैसला किया गया।  आपको बता दें, 9 मई 2011 में हिंदू और मुस्लिम पक्षों ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दी थी।

 ये जज सुनाएंगे निर्णय रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद मामले की ऐतिहासिक फैसला पांच जजों की पीठ सुनाएगी।  जिसमें शेफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एस।  ए।  बोबडे, जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल दर्शक जैसे शामिल हैं।

9 नवंबर, 2019 को, मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता में सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले फैसले को हटा दिया और कहा कि भूमि सरकार के कर रिकॉर्ड के अनुसार है।  इसने हिंदू मंदिर के निर्माण के लिए भूमि को एक ट्रस्ट को सौंपने का आदेश दिया।  इसने सरकार को मस्जिद बनाने के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को वैकल्पिक 5 एकड़ जमीन देने का भी आदेश दिया।