मार्च का महीना था। सर्दियां खत्म भी नहीं हुई थीं और गर्मियां शुरू भी नहीं हुई थीं। दिल्ली के लिए मार्च का महीना सुखद होता है। रात हो चुकी थी। नेहा खिड़की से बाहर झांक रही थी। बाहर गली में नीम के कई पेड़ लगे थे। बसंत बेशक आ चुका था लेकिन नीम के पेड़ थोड़ा लेट चल रही थे। हरे पत्ते रंग बदल कर पीले हो गए थे। हवा के साथ-साथ नीम अपने पुराने पत्ते छोड़कर नए दौर का स्वागत करने को तैयार हो रहा था। बाहर हल्की हवा चल रही थी। उसे अनिल के साथ बिताए पल याद आ रहे थे। सोच रही थी कि अनिल ने अपने को ना जाने किन बंधनों में बांध रखा था।

Anguthi ka bhoot


सोचते सोचते ही नेहा बिस्तर पर आ गिरी। काफी टहलने से वो थकी भी हुई थी। उसकी आंखें तुरंत बोझिल होने लगी। बाहर से कुत्तों के भौंकने की आवाजें आ रही थीं। गली में लगी स्ट्रीट लाइट अचानक जलने-बुझने लगी थी। हल्की हवा चल रही थी परदा हिल रहा था, खिड़की के दरवाजों के साथ पंखे से आवाजें आ रही थीं टक-टक टक-टक।



वक्त धीरे चल रहा था पर वक्त को पीछे छोड़ते हुए नेहा नींद में डूबती चली गई। इस नींद का इंतजार अंगूठी का भूत कर रहा था। नेहा के नींद में जाते ही भूत भी जाग गया। वो नेहा को एक अनोखी दुनिया में ले गया। वो डरा कर भगा नहीं रहा था। वो खींच रहा था अपनी दुनिया में। वो एक नकली दुनिया गढ़ रहा था और नेहा के पास इस दुनिया में खो जाने के अलावा कोई चारा नहीं था।

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कॉलेज का पहला दिन।

नेहा कॉलेज में दाखिल हो रही थी। मन में कुछ खुशी तो कुछ घबराहट थी। स्कूल की दुनिया से निकल कर आई नेहा को सब कुछ हैरान कर रहा था। वो कभी दीवारों को देख रही थी तो कभी अजनबी चेहरों में किसी जान-पहचान वाले को खोज रही थी। गेट से दाखिल होते ही उसे लगा कि कॉलेज में उसे देखा जा रहा है। कुछ-कुछ इशारे भी लड़के आपस में कर रहे हैं। पास खड़ी गाड़ी से गुजरी तो उसने देखा कि उसने ब्लू जींस और सफेद टी शर्ट पहनी है। वो खूबसूरत लग रही थी। उसे अपने बदन कुछ ज्यादा भरा-भरा सा लगा। उसे अपने पर नाज हुआ। उसने एक सेकेंड रूककर शीशे में अपने बाल ठीक किए और आगे बढ़ गई।

इतने में चार लड़कों का एक ग्रुप उसके पास आया और पूछा “आर यू फ्रैशर?”

घबराई सी नेहा ने हां करते हुए गर्दन हिलाई

सीनियर लड़कों ने कहा पास के कमरे में इंटरेक्शन चल रहा है चलिए हमारे साथ।

नेहा मना नहीं कर पाई। पहले ही दिन सीनियर्स को नाराज करने का उसका कोई इरादा नहीं था।

सीनियर लड़के उसे कॉलेज में कोने के एक कमरे में ले गए। वहां पहले से कई सारे सीनियर स्टूडेंट मौजूद थे। अधिकतर लड़के थे लेकिन कुछ लड़कियां भी थीं। सभी के चेहरे पर शरारत भरी मुस्कुराहट थी।

व्हाइट इज योर नेम- एक कड़कड़ाती हुई आवाज आई

नेहा- नेहा ने डरते हुए जवाब दिया।

विच कोर्स- दूसरी आवाज आई

नेहा – बी ए

कई लोगों के हंसने की आवाज आई “अरे, ये तो बीए वाली है”। इतने में तीसरी आवाज आई “आज क्या दिखाने वाली हो?” कहते हुए सब हंस पड़े।

नेहा ने गर्दन उठाकर देखा उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि इस बात का क्या मतलब है?

इतने में एक और आवाज आई, “अरे, घबराओ नहीं, कुछ तो दिखाओ....”

नेहा की समझ में नहीं आ रहा था कि इस डबल मीनिंग बात का क्या जवाब दे। उसे लगा कि वो धरती में धंसती जा रही है।

“मतलब टैलेंट पूछ रहे हैं हम- क्या टैलेंट है तुम्हारा? वैसे कुछ-कुछ तो दिखाई दे रहा है” एक चुभती हुई आवाज ने पूछा। नेहा ने उस शख्स की तरफ देखा तो एक वाहियात सी हंसी नजर आई। उसने रैगिंग के बारे में सुना था, लेकिन उसे अंदाजा नहीं था कि कुछ इस तरह रैगिंग की शुरूआत होगी।

एक और आवाज आई- “ये तो बच्ची दाखिला लेने आई है।“ कहते हुए फिर ठहाके गूंज गए।

एक लड़का आगे आया और कहा “नेहा, उछल कर तो दिखाओ।“

नेहा के आंसू छलकने ही वाले थे। उसे इस तरह का बर्ताव बिल्कुल पसंद नहीं आ रहा था। लेकिन कमरे में मौजूद लड़के और लड़कियां इस भद्दे मजाक का मजा ले रहे थे। अक्सर दर्शक बन कर हम उन चीजों का मजा लेते हैं जिन्हें अपने साथ एक मिनट भी बर्दाश्त ना करें।

वो लड़का फिर बोला “उछलना भी नहीं आता, देखो, ऐसे। हाथ उपर करो और ऐसे”... करते वो उछलने लगा। उसने फिर नेहा की तरफ देखा और कहा ”स्कूल में पीटी नहीं की क्या?” क्लास में ठहाकों का जोर और बढ़ लगा।

“छोड़ो, जरा कैटवॉक करके दिखा दो” और अजीब सी चाल में लड़के ने चल कर दिखाया। नेहा के कदम ठिठक गए थे वो जोर से चिल्लाना चाहती थी। वो कुछ को थप्पड़ भी मारना चाहती थी। पर नेहा हिम्मत जुटा कर क्लास से बाहर निकल ली। इतने में चाल बताने वाला लड़का दौड़ कर आया और गेट के बाहर नेहा का हाथ पकड लिया।

जितने तेजी से वो लड़के ने दौड़ कर हाथ पकड़ा था उतनी तेजी से ही वो वापस कमरे में आकर गिरा। इससे पहले कोई समझ पाता एक पतला सा शख्स कमरे में दाखिल हुआ।

“हिम्मत कैसे हुई लड़की को छेड़ने की” वो चिल्लाया।

“कॉलेज को गली-मोहल्ला समझ कर रखा है। कौन-कौन रैगिंग कर रहा था सब नाम बताओ। सबको निकलवाता हूं बाहर।“ कमरे में सन्नाटा छा गया। सबकी गर्दन नीचे हो गई। एक मिनट पहले जिस कमरे में हंसी-ठहाके गूंज रहे थे अब मरघट जैसी शांति थी। नेहा लड़के के पीछे खड़े हो कर सब देख रही थी। नम आंखों के साथ अब उसके चेहरे पर मुस्कान थी। इस लड़के ने आकर उसकी इज्जत रख ली थी या कहें तो नेहा की बेइज्जती होने से बचा ली थी। सब एक-एक कर कमरे से निकलने लगे।

कोई तो था जिसका इतना रूतबा था कॉलेज में कि ऐसे टेढ़े लड़के भी बात सुन रहे थे। कौन है टीचर है स्टूडेंट हैं? नेहा के मन में सवाल कौंध रहे थे। उनसे गौर से लड़के को देखा। हल्के घुंघराले बाल, चेहरे पर मासूमियत, पैरों में स्पोर्ट्स शूज, जींस के साथ शर्ट पहने हुआ था। रूप-रंग और कपड़ों से टीचर तो नहीं लग रहा था। इतने में एक लड़का जाते हुए बोला “सॉरी भैया”।

नेहा की समझ आ गया कि ये कॉलेज का सीनियर लड़का है। लड़के ने घूमा और नेहा से पूछा – हाई आई एम जय।

जय ने तुरंत नेहा की तरफ हाथ आगे किया. नेहा ने बिना झिझक के हाथ मिलाते हुए नाम बता- “नेहा”।

“उम्मीद है इन लोगों ने ज्यादा तंग नहीं किया होगा। तमाम कोशिशों के बाद भी ये लोग मानते नहीं। जिस लड़के ने हाथ पकड़ा आज तो उसकी तो खैर नहीं।“ - जय ने कहा।

नेहा बहुत कुछ कहना चाहती थी लेकिन उसकी जुबान से सिर्फ थैंक्यू निकला।

“सॉरी, कॉलेज के बाकी स्टूडेंट्स की तरफ से। हम ऐसे वेलकम नहीं करते पर कुछ लोगों की वजह से बाकी बदनाम होते हैं।“ वेलकम कहते हुए एक बार फिर जय ने नेहा का हाथ अपने हाथों में लिया।

नेहा के लिए ये एहसास बहुत खास था। शायद इतने प्यार और सम्मान से तो तो अनिल ने भी उसे कभी हाथ नहीं लगाया।

अनिल का नाम दिमाग में आते ही नेहा को बहुत जोर का झटका लगा। वो बिस्तर पर लेटी थी। उसकी आंख खुल गई थी। आसपास अब भी कुत्ते भौंक रहे थे, परदे हिल रहे थे। पंखा अब भी कट-कट कर रहा था। लाइट उसी तरह जल-बुझ हो रही थी। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि हुआ क्या, इस सपने का मतलब क्या है? कॉलेज के इतने साल बाद उसे ये सपना क्यों आया? वो किस कॉलेज में पहुंची थी? जय कौन था? जय के हाथों के स्पर्श ने उसे भरोसा और सम्मान क्यों महसूस कराया? नेहा ने अपने हाथों को छूकर देखा तो अंगूठी पर से उसका हाथ गुजरा, अंगूठी की गर्माहट उसे महसूस हुई, ठीक वैसी जैसी उसने जय के हथेलियों में महसूस की थी।

नेहा शांत थी पर हैरान थी। उसे डर नहीं लग रहा था, पर वो सपने में लौटना चाहती थी। वो जानना चाहती थी कि आगे क्या हुआ। क्या जय फिर सपने में आएगा? वो जय से बातें करना चाहती थी। एक गिलास पानी पीकर नेहा फिर से लेट गई। रात अभी बाकी थी और अंगूठी का भूत उसे फिर से अपनी दुनिया में खींचने के लिए बेकरार था।


लेखक- गंदगी के महारथी- व्यंग्य संग्रह