इस संसार में वह एक ही जिसका टलना असंभव है और उसे मृत्यु के नाम से जाना जाता है परंतु मृत्यु तो शरीर को आती है और आत्मा के शरीर छोड़कर दुसरा शरीर धारण कर लेती है. प्राचीन समय में एक महान राजा हुए जिनका नाम भरत था. जब उन्हें लगा कि अब राज्य को छोडकर मोक्ष के मार्ग पर जाना चाहिए तो उन्होंने उनकी पत्नी और पुत्रों का त्याग कर दिया और सन्यास धारण करते हुए वन में चले गए.
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एक समय की बात है जब भरत मुनि नदी किनारे स्नान कर रहे थे तब वहां पर एक गर्भवती हरिनी पानी पीने के लिए वहां पर आई और उसी समय एक सिंह भी उस स्थान पर आ गया. सिंह के भय से हरिनी ने छलांग लगाईं और उसी समय उसका बच्चा गर्भ से पानी में गिर गया और हरिनी की मृत्यु हो गई.


भरत मुनि को उस मृग बच्चे पर दया आ गई और वह उस बच्चे को अपने साथ ले गए. भरत मुनि ने सोचा यह बालक बगैर माँ का अकेला है,इसका मेरे सिवा कौन है, वह मुझे ही माता पिता मानता है इसलिए मुझे उसका पूरा पालन पोषण करना चाहिए. धीरे धीरे भरत मुनि के मन में मृग के बच्चे के लिए आसक्ति बढ़ गई.

जिस मोक्ष को पाने के लिए भरत मुनि ने अपने पुत्रों का त्याग कर दिया उसी मोक्ष को वह एक मृग शिशु के लिए भूल गए. उस मृग का पालन करने के लिए उन्होंने सन्यासी के धर्म का त्याग कर दिया. उनसे योग भी छुट गया और इश्वर का ध्यान भी उन्होंने छोड़ दिया. रात्री और दिवस उनके मन में केवल उस मृग के विषय में ही चिंत्ता रहती थी.


उसके बाद एक ऐसा समय आया जब मृत्यु उनके निकट थी. अंत समय में भी उनको उस मृग का ध्यान था. वह मृग भी भरत मुनि के सामने बैठ कर आंसू बहा रहा था. इस तरह उस मृग को देखते देखते भरत मुनि के प्राण निकल गए और उसके बाद भरत मुनि ने उनके अंतकाल की भावना के अनुसार साधारण मनुष्यों की भांति मृग के रूप में फिर से जन्म लिया.

उस मृग जन्म में उन्होंने अपने पूर्व जन्म की तपस्या के फल स्वरूप उनको अपने मृग बनने का कारण ज्ञात रहा और उनको इस बात का बहुत पस्तावा रहा कि मोक्ष के इतने निकट आकर भी उन्हें मोह हुआ और फिर से उन्हें जन्म मृत्यु के चक्र में फंसना पड़ा. इस कथा के एक बात की शिक्षा मिलती है कि मनुष्य के जैसे विचार होते है वैसी ही उसकी गति होती है. मनुष्य की यह गति उसके वर्तमान समय में भी हो सकती है और आनेवाले जन्म में भी हो सकती है. मनुष्य अपने विचारों के आधार पर ही दुसरा जन्म प्राप्त करता है.