दुनिया के कई देशों के पास एसे खतरनाक हथियार हैं , जो पल भर में दुश्मन का सफाया कर सकते हैं । अडवांस मिसाइलें , तोप , टैंक , मशीन गन अमेरिका , रूस , फ्रांस , चीन और भारत जैसे देशों को । शक्तिशाली राष्ट्र की सूची में खड़ा करती हैं । लेकिन अगर किसी मुल्क की ताकत मापनी हो , तो उसकी वायुसेना का दमखम जरूर देखा जाता है । आज हम आपको दुनिया के 10 सबसे ताकतवर फाइटर जेट्स के बारे में बता रहे हैं , जो दुश्मन के इलाके में अंदर तक घुसकर तबाही मचा सकते हैं ।
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मल्टीमीडिया डेस्क
किसी भी दुश्मन की ताकत पता करनी हो या सेना को हमला करना हो। जमीनी हमला करना हो या समुद्र में दुश्मन के जहाज को नष्ट करना हो, सैनिकों को एक कोने से दूसरे कोने तक पहुंचाना हो या थलसेना की मदद के लिए जमीनी युद्ध के दौरान हवाई हमले करनी हो।इन सभी कामों के लिए सबसे ज्यादा जरूरत जिस चीज की होती है, वो लड़ाकू विमान होते हैं। ये फाइटर प्लेन पलक झपकते ही दुश्मन को नेस्तानाबूद कर देते हैं। इसलिए आज दुनिया में जिस किसी भी देश के पास सबसे ताकतवर वायुसेना है, वो सबसे शक्तिशाली है। तो आइए जानते हैं, दुनिया के वो टॉप 10 फाइटर प्लेन, जिनके नाम भर से ही दुश्मन कांप जाते हैं।
एफ 35-लाइटनिंग
स्टील्थ टेक्नोलॉजी से लैस एफ 35-लाइटनिंग विमान मौजूदा समय का सबसे घातक फाइटर प्लेन है। इसकी तकनीक इसे पूरी दुनिया में आगे रखती है। इस फाइटर प्लेन को अमेरिका ने रैप्टर फाइटर प्लेन की अगली पीढ़ी के तौर पर विकसित किया है, जिसे वो दुनिया के शक्तिशाली देशों ऑस्ट्रेलिया, जापान, इजरायल, दक्षिण कोरिया को भी देगा, जिसके लिए समझौते भी हो चुके हैं। ये प्लेन एक बार उड़ान भरने पर दुनिया के किसी भी कोने में निर्बाध रूप से हमले करने में सक्षम है, जिसे रोकने की ताकत फिलहाल विकसित तक नहीं हो पाई है। ये फाइटर प्लेन अभी तक सिर्फ 150 की संख्या में ही तैयार हैं, जिसके दम पर अमेरिका ने पूरी दुनिया पर अभी से दबदबा बना लिया है। इसके तोड़ की खोज शुरू हो चुकी है। हां ये बात है कि अभी तक किसी को भी सफलता नहीं मिली है। इस पर तमाम आधुनिक हथियारों (परमाणु हथियारों समेत) की तैनाती की जा सकती है।
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टी-50: सुखोई पीएके-एफए
भारत और रूस के संयुक्त प्रयास से सिर्फ भारत और रूसी सेना के लिए विकसित किए जा रहे ये फाइटर प्लेन पांचवी पीढ़ी का दुनिया का सबसे उन्नत फाइटर प्लेन होगा। ये सिंगल सीटर और डबल सीटरे दोनों ही श्रेणी में बनाए जा रहे हैं। अभी इस श्रेणी के सिर्फ 5 विमान ही तैयार हुए हैं, जिनकी लगातार ट्रायल जारी है। टी-50 के नाम से ही पश्चिमी देशों के पसीने छूटने लगे हैं, क्योंकि इसके आते ही भारत और रूस पूरी तरह से लड़ाकू विमानों के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो जाएंगे, जो किसी भी राडार की पकड़ में नहीं आते। स्टील्थ फाइटर प्लेन्स की रेस में रूस भी पहली बार व्यापक स्तर पर इस होड़ में शामिल हो चुका है। अभी तक रूस के पास भी एक्टिव स्टील्थ तकनीक से लैस कोई फाइटर प्लेन नहीं है, लेकिन इसके आने से रूस और भारत दोनों ही दुनिया में कहीं भी हमला करने और किसी भी हमले को रोकने में सक्षम हो जाएंगे। भारत और रूस के इस उपक्रम से पाकिस्तान, चीन और अमेरिका में खलबली मची हुई है। एक तरफ पश्चिमी देश और अमेरिका जहां रूस के परंपरागत प्रतिद्वंदी हैं, तो भारत के प्रति पाकिस्तान और चीन का नजरिया किसी से छिपा नहीं। ये फाइटर प्लेन भारत और रूस के वायुसेना के साथ ही नौसेना की जरूरतों को भी ध्यान में रखकर बनाया गया है।
चेंगदू जे-10
चेंगदू जे-10 मौजूदा समय में चीनी सेना का अचूक हथियार है, जो पाकिस्तान के पास थंडर नाम से है। चेंगदू जे-10 किसी भी मौसम में किसी भी लक्ष्य पर तेजी से हमला करने में सक्षम है। चेंगदू जे-10 में लेजर गाइडेड बमों के साथ ही सेटेलाइट गाइडेड बम के उपयोग की भी क्षमता है, जो इसकी मारक क्षमता को बढ़ाते हैं। ये एक बार की उड़ान में कई ठिकानों पर बमबारी में सक्षम है। चीनी सेना चेंगदू-10 श्रेणी के 400 विमानों का इस्तेमाल कर रही है, जिसमें से वो एक स्कॉड्रवन पाकिस्तानी सेना को देने वाली है।
डसाल्ट रॉफेल
डसाल्ट एविएशन की ओर से विकसित ये फाइटर प्लेन फ्रांस के अग्रणी स्ट्राइक टीम का मुख्य हिस्सा है। डसाल्ट रॉफेल हर नई तकनीक से लैस होने के साथ ही परमाणु हमले में भी सक्षम है। इस फाइटर प्लेन ने अफगानिस्तान, लीबिया, माली और इराक हमलों में अपना जौहर दिखाया है। इस फाइटर प्लेन में अपना खुद का रडार सिस्टम है, जो दुश्मन के हमनों को तुरंत पकड़ उन्हें जवाब देने की ताकत रखता है। इसे भारतीय सेना में भी तैनात किया जा रहा है। इसकी तीन श्रेणियां है, जो सिंगल सीटर (जमीनी हमले के लिए), डबल सीटर (जमीन से हमले के लिए) और राफेल एम (सिंगल सीटर) नौसेना के इस्तेमाल के लिए हैं।
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एफ-22 रैप्टर (लॉकहीड मॉर्टिन)
लॉकहीड मॉर्टिन द्वारा विकसित दुनिया का सबसे खतरनाक फाइटर प्लेन है। रैप्टर किसी भी रडार की पकड़ में न आने वाला प्लेन है, जो बेहद कम समय में दुनिया के किसी भी कोने में हमला करने पर सक्षम है। अमेरिका इस खास फाइटर प्लेन पर किस हद तक नाज करता है, इसे इसी बात से समझा जा सकता है कि खास कानून बनाकर इसे किसी भी दूसरे देश की पहुंच से बाहर कर दिया गया है। इसे अमेरिका किसी भी देश को नहीं बेचेगा। ये फाइटर प्लेन लंबी दूरी तक, जमीन के पास और दूर रहकर किसी भी लक्ष्य को नष्ट कर सकता है, साथ ही दुश्मन के फाइटर प्लेन्स को भी। एफ-22 रैप्टर (लॉकहीड मॉर्टिन) को खरीदने में कई देशों ने दिलचस्पी दिखाई, लेकिन बेहद महंगे दाम और रोक की वजह से किसी को भी नहीं मिला। ये इतना महंगा है कि जापान के कुल सैन्य खर्च का 1 फीसद सिर्फ एफ-22 रैप्टर में ही लग जाएगा। हालांकि बाद में अमेरिकी कांग्रेस ने इसके उत्पादन पर रोक लगा दी, लेकिन अगले 30 सालों तक ये अपनी श्रेणी में अद्वितीय फाइटर प्लेन बना रहेगा। इसके उत्पादन पर रोक की वजह से ही इसे थोड़ निचले क्रम पर जगह मिली है।
सी हारियर
ब्रिटिश सेना के लिए निर्मित सी हारियर अपनी श्रेणी में अद्दभुत क्षमता रखने वाला तीसरी पीढ़ी का लड़ाकू विमान है। इस फाइटर प्लेन के दम पर ब्रिटेन ने फॉकलैंड युद्ध, दोनों खाड़ी युद्धों और बाल्कन तनाव के समय भी हमला किया। ये समुद्र से जमीन पर हमला करने में सक्षम है और पोत के माध्यम से दुनिया के किसी भी कोने में हमला कर सकती है। फॉकलैंड युद्ध में इन विमानों ने दुश्मनों के 20 लड़ाकू विमानों को मार गिराया। सी हारियर को भारतीय नौ-सेना आज भी इस्तेमाल कर रही है, तो ब्रिटिश रॉयल नेवी ने इसकी जगह दुनिया के सबसे तेज विमान लॉकहीड मॉर्टिन के लाइटनिंग II से बदला है। क्योंकि इस श्रेणी में लाइटनिंग II के अतिरिक्त कोई भी विमान मौजूद नहीं है।
यूरोफाइटर टाइफून (यूरोपीय यूनियन)
यूरोफाइटर टाइफून को यूरोपीय यूनियन के देशों जर्मनी, इटली, ब्रिटेन और स्पेन ने संयुक्त रूप से बनाया है। यूरोफाइटर टाइफून किसी भी परिस्थिति में काम करने में सक्षम बहुउदेश्यीय फाइटर प्लेन है। इस फाइटर प्लेन ने 2011 में लीबिया हमले हमले के दौरान फ्रांस और इटली की ओर से कमान संभाली। पूरी दुनिया के करीब 22 देश यूरोफाइटर टाइफून का इस्तेमाल कर रहे हैं। इस फाइटर प्लेन में खुद का राडार भी है। जो किसी भी हमले से बचाव में काम आती है। यूरोफाइटर टाइफून अमेरिका के एफ-22 रैप्टर के आधे दाम का है, जबकि एफ-15, राफेल और रूस के मिग 27 से ऑपरेशन में बेहतर परिणाम दे चुका है।
मैक्डोनेल डगलस एफ-15 स्ट्राइक ईगल
मैक्डोनेल डगलस एफ-15 स्ट्राइक ईगल फाइटर प्लेन लंबे समय से अमेरिका समेत 4 देशों की वायुसेना का हिस्सा है। ये विमान पलक झपकते ही किसी भी लक्ष्य को तहस नहस कर सकता है। फाइटर प्लेनों में चौथी पीढ़ी के विमानों का अगुवा ये फाइटर प्लेन दुनिया के तमाम ऑपरेशंस में अपनी भूमिका का जौहर दिखा चुका है। अमेरिकी एफ-15ई स्ट्राइक ईगल की ताकत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जब अमेरिका ने सद्दाम हुसैन की अगुवाई वाली इराकी सेना पर हमला किया तो इराकी वायुसेना ने एफ-15 विमानों का हवाला देकर उड़ने से ही इन्कार कर दिया और देखते ही देखते अमेरिका सेना ने पूरे इराक को तहस-नहस कर दिया। एफ-15 ने इराक, अफगानिस्तान और लीबिया युद्धों में व्यापक स्तर पर तबाही मचाई और जमीन पर आगे बढ़ रही थल सेना को कवर देते हुए दुश्मनों को रौंद डाला। इजरायल ने मैक्डोनेल डगलस एफ-15ई स्ट्राइक ईगल के दम पर गाजा में अंदर तक हमले किए, जिनसे बचने में ही दुश्मन ने पूरी ताकत झोंक डाली। लेकिन इजरायल का मुकाबला नहीं कर सके।
तेजस
सिंगल और डबल सीटर लड़ाकू विमानों की पांचवीं पीढ़ी के विमानों में भारत द्वारा विकसित और भारत में ही निर्मित तेजस पूरी तरह से दुनिया के सर्वश्रेष्ठ लड़ाकू विमानों में शामिल हो चुका है। स्टील्थ तकनीक से लैस ये विमान भारत की हर जरूरत को पूरा करेगा, जो भारत की वायुसेना और जलसेना दोनों की ही उपयोग के लिए है। ये हल्का विमान है और बेहद कम समय में ही दुश्मन पर हमला करने में सक्षम है। तेजस की चकाचौंध से अभी से पूरी दुनिया थर्रा रही है। तेजस को भारतीय सेना में शामिल किया जा चुका है और इसी साल में ही पूरी स्कॉड्रवन की तैनाती हो जाएगी। भारतीय वायुसेना पूरी तरह से सिर्फ तेजस के ही 3 स्कॉड्रवन बनाना चाहती है, जो दुनिया के किसी भी लक्ष्य को वेधने में सक्षम है। तेजस कम उंचाई में उड़ान भरकर महज 15 मिनट में पाकिस्तान के किसी भी शहर को तहस नहस कर सकता है। इसपर परमाणु हथियारों की तैनाती भी की जाएगी। तेजस की सबसे बड़ी खूबी उसका किसी भी मौसम और किसी भी समय उड़ान भरकर हमला करने की है, जिससे भारत पड़ोसी देशों पर किसी भी युद्ध के शुरुआती चरण में भी बढ़त बना लेगा। इसे किसी भी मिसाइल से नहीं गिराया जा सकेगा।
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ग्रिपेन
स्वीडन का लड़ाकू विमान ग्रिपेन मौजूदा समय के सबसे बेहतरीन लड़ाकू विमानों में से एक है। ये अनेरिका के एफए-18 सुपर हॉरनेट, और फ्रांसीसी रॉफेल विमानों से भी बेहतर है। ये हर परिस्थिति में सटीक तरह से हमले करने में सक्षम है। ब्राजील ने इसकी सटीकता को देखते हुए रॉफेल और अमेरिकी एफए-18 पर तरजीह दी। ये विमान एक तरफ तो दुनिया में सबसे तेज (मैक-2 स्पीड-सुपरसोनिक) से हमला करती है, तो बेहद छोटे (25 मीटर) की पट्टी पर भी लैंड करने में सक्षम है। स्वीडन के इस विमान की सबसे बड़ी खूबी इसके रखरखाव का सबसे सस्ता होना है। स्वतंत्र विशेषज्ञों के अनुसार, स्वीडिश लड़ाकू विमान ग्रिपेन को एक घंटे की उड़ान के बाद 6 से 10 तकनीशियन केवल आधे घंटे में ही नई उड़ान के लिए तैयार कर सकते हैं। इन मानकों की दृष्टि से लड़ाकू विमान ग्रिपेन अपने यूरोपीय प्रतिद्वंद्वियों से कहीं आगे है। उदाहरण के लिए, फ्रांसीसी विमान राफेल को एक घंटे की उड़ान के बाद नई उड़ान के लिए तैयार करने हेतु 15 तकनीशियनों को एकसाथ काम करना पड़ता है। अमरीकी विमान एफ-35 लाइटेनिंग-2 को तैयार करने के लिए 30 से 35 तकनीशियनों की आवश्यकता होती है। यही नहीं, ये सबसे सस्ते उड़ानों के लिहाज से भी बेहतर है। ग्रिपेनट के एक घंटे की उड़ान भरने के लिए 4700 डॉलर, जबकि राफेल की उड़ान के लिए 15 हज़ार डॉलर खर्च करने पड़ते हैं। मतलब राफेल की उड़ान ग्रिपेन की उड़ान से तीन गुना महंगी पड़ती है।
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