रामायण में मंथरा एक ऐसा पात्र है जिसके कारण भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मणजी को वनवास जाना पड़ा. श्रीराम को वनवास जाना पड़ा उसमे एक तरह से समाज का और देवताओं का कल्याण ही था क्योंकि श्रीराम ने वनवास के दौरान ही रावण का अंत किया था. श्रीराम को अगर वनवास नहीं होता तो श्रीराम रावण का वध करके अपना अवतार कार्य कैसे पूर्ण करते यह भी एक सोचने की बात है.
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दोस्तों रामायण की तरह महाभारत भी एक बहुत बड़ा ग्रंथ है और इस महान ग्रंथ में भगवान राम के चरित्र का वर्णन भी आता है. उस वर्णन के अनुसार जब राक्षसराज रावण से भयभीत होकर देवता ब्रह्माजी की शरण में गए थे तब ब्रहमाजी ने देवताओं को कहा अब रावण का अंत निकट है, तुम सब भी रींछ और वानर रूप में पृथ्वी पर अवतार धारण करो और भगवान राम की सहायता करो.

उस समय देवताओं ने एक दुंदुभी नाम की गंधर्वी को बुलाया और कहा तुम पृथ्वी पर जन्म धारण करो और वहां पर तुम्हे कैकेयी की दासी बनना है और तुम्हे किसी तरह भगवान राम को वन में जाने के लिए सहायता करनी है. उस समय उस दुंदुभी नाम की गंधर्वी ने श्रीराम को वन में भेजने का दायित्व स्वीकार कर लिया.
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उसके बाद वहीँ गंधर्वी पृथ्वी पर कुब्जा के रूप में जन्मी. उस समय उसका नाम मंथरा रखा गया और वहीँ राजा दशरथ की छोटी रानी कैकेयी की दासी बनी थी. उस समय मंथरा ने अपना वह कार्य किया जिस कार्य के लिए देवताओं ने उसे पृथ्वी पर भेजा था. उसने रानी कैकेयी के मन में रामजी के प्रति संदेह उत्पन्न कर दिया जिस कारण से रानी कैकेयी ने राजा दशरथ से श्रीराम को वनवास देने की मांग की और श्रीराम को अपने पिता का वचन पूर्ण करने के लिए वन में जाना पड़ा और फिर आगे के घटनाक्रम में श्रीराम ने रावण का वध करके देवताओं का कार्य संपूर्ण किया और पृथ्वी पर धर्म मर्यादा की स्थापना की.